Thursday, February 23, 2012

बचपन

दिन वो बड़े सुहाने थे..जब रूठते थे हम झूठ सेछोटी छोटी बात पर..ओर माँ मनाती गोद मे बिठाकर,,पूछती आसुओं को अपने आँचल से..ना थी कोई फ़िक्र कल की,,ना कोई स्पर्धा हर पल की..मस्ती मे कटते थे दिन..इंतज़ार बस रात का होता था,,जब चंदा मामा झाँकता बादल से..झगड़ते थे जब हम किसी सेछोटी सी किसी बात पर..मासूम थे हम दिल से फिर भी.शिकायत ना थी कभी..झूमते थे फिर उसकी एक आवाज़ से..आगे बढ़ने की चाह मेंदेखो हम कहाँ आ गये है..रूठे है तो कोई मनाने वाला नही..झगड़े तो कोई लौट कर आने वाला नही..इंतज़ार अब सिर्फ़ लम्हो के गुज़रने का होता है..जब बचपन था इतना अच्छा तोइंसान क्यों बड़ा होता है...पिता की उंगली हमेशा तुम्हारा हाथ जहाँ पकड़े थी..माँ की कहानियाँ वो..सुंदर सपनो मे तुम्हे जकड़े थी..आज हम खड़े है उस जगहलंबी राते जाग कर बिताते है..हर पल एक बेहतर ज़िंदगी के लिए..आँखे हो नम पर झूठमूठ मुस्कुराते है

राईटनटाईप पड़ौसी पड़ोसी है हिंदू न मुस्लिम…….

इस्लाम में पडोसी का पूरा खयाल रखने,उसके सुख दुख में भागीदार बनने और किसी भी तरह उसको दुख न पहुचाने की सख्त ताकीद की गई है। पडोस से बेपरवाह व्यक्ति को उसकी जिम्मेदारी का एहसास कराकर बताया गया है कि एक पडोसी के रूप में उसकी क्या-क्या जिम्मेदारियां हैं। पडोसी चाहे किसी भी मजहब का मानने वाला हो ,उसके प्रति ये पूरे हक अदा किए जाने चाहिए।
हरेक तश्नालब की हिमायत करूंगा,
समंदर मिला तो शिकायत करूंगा।
अगर आंच आई किसी जिंदगी पर,
हो अपना पराया हिफ़ाज़त करूंगा।
अभी तो ग़रीबों में मसरूफ हूँ मैं,
मिलेगी जो फुर्सत इबादत करूंगा।
तरक्की की ख़ातिर वो यूं कह रहा था,
मैं जिस्मों की खुलकर तिजारत करूंगा।
ज़मीर अपना बेचूंगा जो दौलत कमाउ,
अब इक रास्ता है सियासत करूंगा।
उसूलों पे अपने जो क़ायम रहेगा,
वो दुश्मन भी हो तो मुहब्बत करूंगा।
पड़ौसी पड़ौसी है हिंदू न मुस्लिम,
मैं बच्चो को यही हिदायत करूंगा।
क़लम जो लिखेगा वो बेबाक होगा,
अगर दिल ये माना सहाफत करूंगा।।