धमाकों के तमाचों से आँखें तो खुली होंगी ,
गर अब भी न उठा हाथ तो ये बुजदिली होगी ।
चूहे बिल्ली का ये खेल आख़िर कब तक चलेगा ?
आज दहली है मुंबई कल खाक में दिल्ली होगी ।
है गफलत की उंघती सरकारें जागेंगी धमाकों ke शोर से
सियासतदानों की कुछ देर को महज कुर्सी हिली होगी ।
ज़ंग जरूरत है अमन की हिफाजत के लिए वरना
खिजां के साए तले सहमी चमन की हर कली होगी
"सौ सुनार की एक लोहार" की याद रहे 'कबीर'
जब हम लेंगे हिसाब तो हर चोट की वसूली होगी
No comments:
Post a Comment