Friday, November 7, 2008

अब तो जागो

धमाकों के तमाचों से आँखें तो खुली होंगी ,

गर अब भी न उठा हाथ तो ये बुजदिली होगी ।

चूहे बिल्ली का ये खेल आख़िर कब तक चलेगा ?

आज दहली है मुंबई कल खाक में दिल्ली होगी ।

है गफलत की उंघती सरकारें जागेंगी धमाकों ke शोर से

सियासतदानों की कुछ देर को महज कुर्सी हिली होगी ।

ज़ंग जरूरत है अमन की हिफाजत के लिए वरना

खिजां के साए तले सहमी चमन की हर कली होगी

"सौ सुनार की एक लोहार" की याद रहे 'कबीर'

जब हम लेंगे हिसाब तो हर चोट की वसूली होगी


तेरा शुक्रिया कुछ इस तरह से अदा करूं

तू करे बेवफाई मैं सदा वफ़ा करूं ।

मेरी मोहब्बत ने बस इतना सिखाया मुझे,

ख़ुद मिट जाऊं पर तेरे लिए दुआं करूं ।

तेरा शुक्रिया कुछ.......