Saturday, September 1, 2012

लिखे पढ़े होते अगर तो तुमको ख़त लिखते उस ख़त में हम तुम्हे क्या क्या लिखने के बहाने लिखते कुछ ख्वाब अधूरे लिखते कुछ गीत सुहाने लिखते जो बात अभी तक तुमसे घबरा कर बोल न पाए जो भीत तुम्हारे आगे शर्माकर खोल ना पाए अपना दीवानापन खोल कर तो दीवाने लिखते लिखते की घनी बरखा में सूरज की किरण लगती हो सावन की घटा में लिपटा चाँद का बदन लगती हो यादों में तुम्हारी खो कर हम भी अफसाने लिखते जब शाम को ठंडी ठंडी दखान से हवा आती है हर सांस में धीमी धीमी एक आग लगा जाती है कटते हैं तुम्हारे गम में कैसे वो जमाने लिखते

 लिखे पढ़े होते अगर तो तुमको ख़त लिखते
उस ख़त में हम तुम्हे क्या क्या लिखने के बहाने लिखते
कुछ ख्वाब अधूरे लिखते कुछ गीत सुहाने लिखते


जो बात अभी तक तुमसे घबरा कर बोल न पाए
जो भीत तुम्हारे आगे शर्माकर खोल ना पाए
अपना दीवानापन खोल कर तो दीवाने लिखते

लिखते की घनी बरखा में सूरज की किरण लगती हो
सावन की घटा में  लिपटा चाँद का बदन लगती हो
यादों में तुम्हारी खो कर हम भी अफसाने लिखते

जब शाम को ठंडी ठंडी दखान से हवा आती है
हर सांस में धीमी धीमी एक आग लगा जाती है
कटते हैं तुम्हारे गम में कैसे वो जमाने लिखते