Tuesday, November 18, 2008

वो यादें

कुछ अपने थे कुछ सपने थे
कुछ पहचाने से कुछ अनजाने थे
वक्त की दौड़ में वो सब
जाने कहाँ खो गए।

सब कुछ अपना था कुछ देर पहले
आज हम इतने बेगाने से हो गए।

तन्हाई से बातें करना अच्छा लगता था
तन्हाई भी साथ नही अब तो
जाने इतने तनहा कैसे हो गए।

सब कुछ तो है पहले जैसा पर
वो लम्हे जो खुशी दिया करते थे
जाने कहाँ बनकर खुशबू फिजाओं में खो गए।

ढूंढती है आँखें मेरी फिर वही मंज़र
वो सपने वो यादें, वो रेत और समंदर
कहीं नज़र नही आते वो पल, वो सामान
लगता है जैसे की वो कंही धुआं हो गए...

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