Wednesday, June 17, 2009

हुल्लड़ मुरादाबादी

मान जा तदबीर पर मत नाज़ कर शक किया वो भी खुदा पर, डूब मरनैमतें देगा मगर यह शर्त है तू उसी के नाम से आगाज़ कर
साल आया है नया
बाल धोनी से बढ़ा ले, साल आया है नया कटिंग के पैसे बचा ले, साल आया है नयाऐड की शूटिंग करो, किरकेट जाए भाड़ में रैंप पर खुद को चला ले, साल आया है नया जो पुरानी चप्पलें हैं, मन्दिरों के पास रखकुछ नये जूते उठा ले, साल आया है नयाआरती का थाल आए तो चवन्नी डालकरनोट तू दस का उठा ले, साल आया है नया चार मुक्तक तो हमारे सामने ही पढ़ गया संकलन पूरा चुरा ले, साल आया है नया चाहता है तू हसीनों से अगर नज़दीकियाँचाट का ठेला लगा ले, साल आया है नया मैं अठन्नी दे रहा था, तब भिखारी ने कहा तू यहां चादर बिछा ले, साल आया है नया चार दिन तो बर्फ गिरने के बहाने चल गएआज तो ‘हुल्लड़’ नहा ले, साल आया है नया जो कि पिछले साल तुझको दे रहा था गालियाँचाय पर उसको बुला ले साल आया है नया
रोज़ कुछ टाइम निकालो मुस्कराने के लिए
मसखरा मशहूर है, आँसू छिपाने के लिएबाँटता है वो हँसी, सारे ज़माने के लिएज़ख्म सबको मत दिखाओ, लोग छिड़केंगे नमकआएगा कोई नहीं मरहम लगाने के लिएदेखकर तेरी तरक्की, खुश नहीं होगा कोईलोग मौका ढूँढ़ते हैं काट खाने के लिएफलसफा कोई नहीं है और न मकसद कोईलोग कुछ आते जहाँ में, हिनहिनाने के लिए मिल रहा था भीख में सिक्का मुझे सम्मान का मैं नहीं तैयार था झुककर उठाने के लिए ज़िन्दगी में गम बहुत हैं, हर कदम पर हादसे रोज़ कुछ टाइम निकालो मुस्कराने के लिए
अच्छा है पर कभी कभी
बहरों को फरियाद सुनाना, अच्छा है पर कभी कभीअन्धों को दर्पण दिखाना, अच्छा है पर कभी कभीऐसा न हो तेरी कोई उँगली गायब हो जाएनेताओं से हाथ मिलाना, अच्छा है पर कभी कभीबीवी को बन्दूक सिखाकर तुमने रिस्की काम कियाअपनी लुटिया आप डुबाना अच्छा है पर कभी कभीहाथ देखकर पहलवान का, अपना सर फुड़वा बैठेपामिस्ट्री में सच बतलाना, अच्छा है पर कभी कभीतुम रूहानी शे’र पढ़ोगे, पब्लिक सब भग जायेगी भैंस के आगे बीन बजाना, अच्छा है पर कभी कभीघूँसे लात चले आपस में, संयोजक का सिर फूटाकवियों को दारू पिलवाना अच्छा है पर कभी कभी जितने चाँदी के चम्मच थे, सबके सब गायब पाएकवियों को मेहमान बनाना अच्छा है पर कभी कभीपचीस डालर जुर्माने के पीक थूकने में खर्चेवाशिंगटन में पान चबाना, अच्छा है पर कभी कभीमिस्टर टुल्लानन्द भारती सम्मेलन में हूट हुए किसी और के गीत सुनाना अच्छा है पर कभी कभी तू मन्दिर में ढूँढ़ रहा है, वो तो तेरे दिल में हैपत्थर को भगवान बनाना, अच्छा है पर कभी कभीबाहर काफी चकाचौंध है भीतर बहुत अँधेरा है धन की खातिर खुद बिक जाना अच्छा है पर कभी कभीहमने देखा कल सपने में लालू जी ने दूध दिया गाय भैंस का चारा खाना अच्छा है पर कभी कभी
छुट्टियाँ नहीं होतीं
इतनी ऊँची मत छोड़ो, गिर पड़ोगे धरती पर क्योंकि आसमानों में, सीढ़ियाँ नहीं होतींमत करो बुढ़ापे में इश्क की तमन्नाएँक्योंकि फ्यूज़ बल्बों में बिजलियाँ नहीं होतींरोज़ क्यों नहाते हो वज्न मत घटाओ तुम वो बदन भी क्या जिसमें खुजलियाँ नहीं होतींजब से यह पुलिस वाले गश्त पर नहीं आते तबसे इस मुहल्ले में चोरियाँ नहीं होतीं ये तो आम जनता है चाहे चूस लो जितना फिक्र मत करो इनमें गुठलियाँ नहीं होतींमार खा के सोता है रोज़ अपनी आया से सबके भाग्य में माँ की लोरियाँ नहीं होतींजो तलाश में खुद की चल रहे अकेले हैंयार उनके पावों में जूतियाँ नहीं होतीं वो भरी जवानी में खुदकुशी नहीं करता काश उसके कुनबे में बेटियाँ नहीं होतींसबको उस रज़िस्टर पर हाज़िरी लगानी है मौत वाले दफ़्तर में छुट्टियाँ नहीं होतींजो ज़मीर रख आए जेब में पड़ोसी की उनसे देशभक्ति की गलतियाँ नहीं होतीं कर्म के मुताबिक ही फल मिलेगा इंसां को आम वाले पेड़ पर भिण्डियाँ नहीं होतींनाम में शहीदों के डिग्रियाँ नहीं होतींबदनसीब हाथों में चूड़ियाँ नहीं होतीं बूँद में समन्दर को जिसने पा लिया ‘हुल्लड़’साहिलों से फिर उसकी दूरियाँ नहीं होतीं
ज़रूरत क्या थी ?
आईना उनको दिखाने की ज़रूरत क्या थी ? वो हैं बन्दर ये बताने की ज़रूरत क्या थी ?घर पे लीडर को बुलाने की ज़रूरत क्या थीनाश्ता उनको कराने की ज़रूरत क्या थी ?चार बच्चों को बुलाते तो दुआएँ मिलतीं साँप को दूध पिलाने की ज़रूरत क्या थीदो के झगड़े में पिटा तीसरा चौथा बोला आपको टाँग अड़ाने की ज़रूरत क्या थी ?चोर जो चुप ही लगा जाता तो वो कम पिटता बाप का नाम बताने की ज़रूरत क्या थी ?जब पता था कि दिसम्बर में पड़ेंगे ओलेसर नवम्बर में मुड़वाने की ज़रूरत क्या थी ?अब तो रोज़ाना गिरेंगे तेरे घर पर पत्थरआम का पेड़ लगाने की ज़रूरत क्या थी ?जब नहीं पूछा किसी ने क्या थे जिन्ना क्या नहीं ?आप को राय बताने की जरूरत क्या थी ?एक शायर ने ग़ज़ल की जगह गाली पेलीउसको दस पेग पिलाने की ज़रूरत क्या थी ?दोस्त जंगल में गया हाथ गवाँकर लौटाशेर को घास खिलाने की ज़रूरत क्या थी ?
सारे बन्दर आजकल
शायरों को मिल रहे हैं ढेरों पत्थर आजकल क्योंकि मँहगे हो गए हैं अण्डे आजकलगद्य में भी चुटकले हैं पद्य में भी चुटकलेरो रहा है मंच पर ह्युमर सटायर आजकल इन कुएँ के मेढकों ने पी लिया है पानी सभीडूबकर मरने लगे हैं सब समन्दर आजकलगीत चोरी का सुनाया उसने अपने नाम से रह गया है शायरा का यह करैक्टर आजकलकाटने को दौड़ता है हर दिवस सप्ताह काजब से सर पर चढ़ गया है यह शनीचर आजकलआदमी के ख़ून का प्यासा हुआ है आदमीहँस रहे हैं आदमी पर सारे बन्दर आजकल
हज़ारों मोनिका लाता
ग़रीबी ने किया कड़का, नहीं तो चाँद पर जाता तुम्हारी माँग भरने को सितारे तोड़कर लाताबहा डाले तुम्हारी याद में आँसू कई गैलनअगर तुम फ़ोन न करतीं यहाँ सैलाब आ जातातुम्हारे नाम की चिट्ठी तुम्हारे बाप ने खोली उसे उर्दू जो आती तो मुझे कच्चा चबा जाता तुम्हारी बेवफाई से बना हूँ टाप का शायरतुम्हारे इश्क में फँसता तो सीधे आगरा जाता ये गहरे शे’र तो दो वक़्त की रोटी नहीं देते अगर न हास्य रस लिखता तो हरदम घास ही खाता हमारे चुटकुले सुनकर वहाँ मज़दूर रोते थे कि जिसका पेट खाली हो कभी भी हँस नहीं पाता मुहब्बत के सफर में मैं हमेशा ही रहा वेटिंगकिसी का साथ मिलता तो टिकट कन्फर्म हो जाता कि उसके प्यार का लफड़ा वहाँ पकड़ा गया वर्नानहीं तो यार ये क्लिंटन हज़ारों मोनिका लाता
मुल्क तो इनका मकां है साथियो
ना यहाँ है ना वहाँ है साथियोआजकल इंसां कहाँ है साथियोआम जनता डर रही है पुलिस से चुप यहाँ सब की जबाँ है साथियोपार्टी में हाथ है हाथी कमलआदमी का क्या निशां है साथियोलीडरों का एक्स-रे कर लीजिएझूठ रग रग में रवाँ है साथियोये उठा दें रैंट पर या बेच देंमुल्क तो इनका मकां है साथियो

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