Wednesday, June 17, 2009

जिंदगी ऐ जिंदगी - अहमद फराज

जिससे ये तबियत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर एक दिल से लगी थी
तनहाई में रोते हैं कि यूँ दिल को सुकूँ हो
ये चोट किसी साहिबे-महफ़िल से लगी थी
ऐ दिल तेरे आशोब1 ने फिर हश्र2 जगाया
बे-दर्द अभी आँख भी मुश्किल से लगी थी
ख़िलक़त3 का अजब हाल था उस कू-ए-सितम4 में
साये की तरह दामने-क़ातिल5 से लगी थी
उतारा भी तो कब दर्द का चढ़ता हुआ दरिया
जब कश्ती ए-जाँ6 मौत के साहिल7 से लगी थी
1. हलचल, उपद्रव, 2. प्रलय, मुसीबत, 3. जनता 4. अत्याचार की गली 5. हत्यारे के पल्लू 6. जीवन नौका 7. किनारा

तू पास भी हो तो दिले-बेक़रार अपना है
कि हमको तेरा नहीं इन्तज़ार अपना है
मिले कोई भी तेरा जिक्र छेड़ देते हैं कि
जैसे सारा जहाँ राज़दार अपना है
वो दूर हो तो बजा तर्के-दोस्ती1 का ख़याल
वो सामने हो तो कब इख़्तियार2 अपना है
ज़माने भर के दुखो को लगा लिया दिल से
इस आसरे पे कि एक ग़मगुसार3 अपना है
बला से जाँ का ज़ियाँ4 हो, इस एतमाद5 की ख़ैर
वफ़ा करे न करे फिर भी यार अपना है
फ़राज़ राहते-जाँ भी वही है क्या कीजे
वो जिसके हाथ से सीना फ़िगार6 अपना है
1. दोस्ती छोड़नी 2. वश 3. दुख सहने वाला 4. नुकसान 5. विश्वास, भरोसा, 6 घायल, आहत

अब वो झोंके कहाँ सबा1 जैसे
आग है शहर की हवा जैसे
शब सुलगती है दोपहर की तरह
चाँद, सूरज से जल बुझा जैसे
मुद्दतों बाद भी ये आलम है
आज ही तो जुदा हुआ जैसे
इस तरह मंज़िलों से हूँ महरूम2
मैं शरीके-सफ़र3 न था जैसे
अब भी वैसी है दूरी-ए-मंज़िल
साथ चलता हो रास्ता जैसे
इत्तफ़ाक़न भी ज़िन्दगी में फ़राज़
दोस्त मिलते नहीं ज़िया4 जैसे
1 पुरवाई, समीर, ठण्डी हवा 2. वंचित, 3. सफ़र में शामिल 4 ज़ियाउद्दीन ज़िया

फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर, शायद
जिनके हम मुन्तज़र1 रहे उनको
मिल गये और हमसफर शायद
जान पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त, ग़ौर कर शायद
अजनबीयत की धुन्ध छँट जाये
चमक उठे तेरी नज़र शायद
ज़िन्दगी भर लहू रुलायेगी
यादे-याराने-बेख़बर2 शायद
जो भी बिछड़े, वो कब मिले हैं फ़राज़
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद
1. प्रतीक्षारत 2. भूले-बिसरे दोस्तों की यादें

बेसरो-सामाँ1 थे लेकिन इतना अन्दाज़ा न था
इससे पहले शहर के लुटने का आवाज़ा2 न था
ज़र्फ़े-दिल3 देखा तो आँखें कर्ब4 से पथरा गयीं
ख़ून रोने की तमन्ना का ये ख़मियाज़ा5 न था
आ मेरे पहलू में आ ऐ रौनके- बज़्मे-ख़याल6
लज्ज़ते-रुख़्सारो-लब7 का अबतक अन्दाजा न था
हमने देखा है ख़िजाँ8 में भी तेरी आमद के बाद
कौन सा गुल था कि गुलशन में तरो-ताज़ा न था
हम क़सीदा ख़्वाँ9 नहीं उस हुस्न के लेकिन फ़राज़
इतना कहते हैं रहीने-सुर्मा-ओ-ग़ाज़ा10 न था
1 ज़िन्दगी के ज़रूरी सामान के बिना 2. धूम 3. दिल की सहनशीलता 4. दुख, बेचैनी, 5. परिणाम, करनी का फल 6. कल्पना की सभा की शोभा 7. गालों और होंटों का आनन्द 8. पतझड़ 9,. प्रशस्ति-गायक, प्रशंसक 10 सुर्मे और लाली पर निर्भर

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