Wednesday, June 17, 2009

हर तस्वीर अधूरी - महताब हैदर नकवी

(१)
उसे भुलाये हुए मुझको इक ज़माना हुआ
कि अब तमाम मेरे दर्द का फ़साना हुआ
हुआ बदन तेरा दुश्मन, अदू1 हुई मेरी रूह
मैं किसके दाम2 में आया हवस निशाना हुआ

यही चिराग़ जो रोशन है बुझ भी सकता था
भला हुआ कि हवाओं का सामना न हुआ

कि जिसकी सुबह महकती थी, शाम रोशन थी
sunaa है वो दर-ए-दौलत ग़रीब-ख़ाना हुआ

वो लोग खुश हैं कि वाबस्ता-ए-ज़माना3 हैं
मैं मुतमइन4 हूँ कि दर इसका मुझ पे वा5 न हुआ
1. शत्रु 2. जाल 3. युग से सम्बद्ध 4. संतुष्ट 5. खुला हुआ
(२)
सुबह की पहली किरन पर रात ने हमला किया
और मैं बैठा हुआ सारा समां देखा किया

ऐ हवा ! दुनिया में बस तू है बुलन्दइक़बाल1 है
तूने सारे शहर पे आसेब2 का साया किया

इक सदा ऐसी कि सारा शहर सन्नाटे में गुम
एक चिनगारी ने सारे शहर को ठंण्डा किया

कोई aansoon आँख की दहलीज़ पर रुक-सा गया
कोई मंज़र अपने ऊपर देर तक रोया किया

सबको इस मंजर में अपनी बेहिसी पर फ़ख़ है
किसने तेरा सामना पागल हवा कितना कीया
1। तेजस्वी 2. प्रेत-बाधा 3. मिलन 4. विरह-स्थल
(३)
मुख़्तसर-सी1 ज़िन्दगी में कितनी नादानी करे
इस नज़ारों को कोई देखे कि हैरानी करे
धूप में इन आबगीनों2 को लिए फिरता हूँ मैं
कोई साया मेरे ख़्वाबों की निगहबानी करे
रात ऐसी चाहिए माँगे जो दिनभर का हिसाब
ख़्वाब ऐसा हो जो इन आँखों में वीरानी करे
एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूँ
कितनी दहलीज़ों पे सज़दा एक पेशानी3 करे
साहिलों पर मैं खड़ा हूँ तिश्नाकामों4 की तरह
कोई मौज-ए-आब5 मेरी आँख को पानी करे
1. छोटी-सी 2. बहुत बारीक काँच की बोतलें 3. माथा 4. प्यासों 5. पानी की लहर

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